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ईश्वरीय व्यवस्था | ISHWARIY VYAVASTHA | Divine Orderin Hindi By Saral Vichar


ईश्वरीय व्यवस्था | ISHWARIY VYAVASTHA | Divine Orderin Hindi By Saral Vichar


यह बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है। एक दिन एक महिला मेरे पास आंखों में आंसू भरकर आई और रोते हुए कहने लगी, 'मैं अपने पति से बेहद प्यार करती हूं, परंतु वे तो मुझे छोड़ कर अपने व्यवसाय को फैलाने विदेश जा रहे हैं। यहां हमें धन का कोई अभाव नहीं है। लाखों का कारोबार है--- फिर मुझे अकेली छोड़कर और अधिक धन पाने की लालसा का क्या कोई औचित्य है?'

दादा! आप ही मेरे लिए प्रार्थना करें कि भगवान उनकी मति फेर दें, और वे कभी मुझसे जुदा होने की कल्पना भी न करें।

मैंने कहा- मैं ईश्वर से कभी ये प्रार्थना नहीं करता कि - आप इस घटना को ऐसा मोड़ दे दो या वैसा मोड़ दे दो! मैं तो उनसे यही प्रार्थना करूंगा कि आपकी इच्छा के अनुसार जो कुछ इस महिला के जीवन में घटित हो रहा है, उसके अनुसार ही यह आपकी मर्जी में सहयोगी बने और उसे सहर्ष स्वीकार कर ले । बहन! तुम ईश्वर की मर्जी में कोई बाधा या रोड़ा मत अटकाओ । शायद उस बहन को मेरे विचार बड़े कर्कश और निर्दयतापूर्ण लगे होंगे ।

एक दिन जब उसका पति विदेश चला गया तो, उसने मुझे उलाहना दिया- दादा! आपने मेरी कोई मदद नहीं की। आप चाहते तो उन्हें रोक सकते थे।
मैं हंस कर बोला बहन! मन छोटा मत करो, निराश मत हो । ईश्वर हमें भिन्न-भिन्न तरीकों से अपने आशीर्वाद देता है, और हमारा कल्याण करता है।
कुछ महीनों के बाद जब वह मिली तो उसका चेहरा खुशी से दमक रहा था। उसने मिलते ही कहा- दादा! अब मेरी समझ में आ गया है कि हमारे जीवन में जो कुछ घटित होता है, उसमें परम हितेषी परमात्मा की हमारे प्रति कल्याण भावना और मंगल भावना का आशीर्वाद छिपा होता है। पति की विरह में जब मैं तड़प रही थी तो मुझे यह अहसास हुआ कि उन्हें मुझसे दूर करने में ईश्वर की कोई विशेष कृपा है। अब मुझे काफी समय मिलता है, जिसे मैं गीता, गुरु ग्रंथ साहिब, संतवाणी और अन्य सुंदर शास्त्रों को पढ़ने में व्यतीत करती हूं। ध्यान, चिंतन और प्रार्थना में भी रस लेने लगी हूं। ईश्वर की महिमा के गीत गाती हूं। बेसहारा गरीबों और बच्चों की सेवा कर स्वयं को धन्य मानती हूं। अब मुझे लोग ज्यादा स्नेह करते हैं, और मेरा भी स्नेह का दायरा अति विस्तृत हो चुका है। मैं आज अपने को अति सुखी और शांत महसूस करती हूं।

मैंने कहा- हमारे जीवन की गति उसी प्रेमपूर्ण सर्वव्यापी परमात्मा की कुशल व्यवस्था द्वारा संचालित होती है। उसकी व्यवस्था सदैव त्रुटिहीन होती है। हमें सही दिशा दिखाने और एक नए अनुभव से परिचित करवाने के लिए ही हमारे जीवन में नित नई घटनाएं घटती रहती हैं। ये घटनाएं हमें नए पाठ पढ़ाती हैं। जो कुछ जीवन में घटे, उसे सहर्ष स्वीकार करना सीखें। उसे टालने की कोशिश या उपाय न करें। जो भी अनुभव अवांछनीय या अप्रिय लगे, उसे हम दूर करने की कोशिश बार बार करते हैं, क्योंकि यह एक कठिन परीक्षा की घड़ी होती है। हम थोड़े समय तक उसे दूर रखने में सफल भले ही हो जाएं, मगर हमेशा के लिए उसे टालना असंभव है। वे परिस्थितियां ईश्वर ने हमारी प्रगति के लिए ही उत्पन्न की हैं, ताकि हम उन अप्रिय अनुभवों से गुजर कर मानसिक और आत्मिक उन्नति कर सकें।

जिस तरह आग में तपकर ही कुंदन चमकता है, ठीक उसी तरह कठिनाईयों की अग्नि से गुजरने के बाद ही हमारा भविष्य दमकने लगता है। अगर हमने इन्हें दूर करने की कोशिश की तो वे दुगने वेग से वापिस आती हैं। जब तक हम इन परिक्षाओं की चुनौती को स्वीकार कर इन्हें जीत नहीं लेते, तब तक ये हमारा पीछा नहीं छोड़तीं।
इसलिए कठिनाईयों की चुनौतियों को स्वीकार करना ही सबसे सरल उपाय है। अपने आत्मिक उत्थान का वरदान अवश्य प्राप्त होगा।

-DADA J. P. VASWANI


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