कितना अजीब है ना,
दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?
जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा...
दोनों काफ़ी नाज़ुक है,
दोनों में गहराई है,
दोनों वक़्त के राही हैं,
दोनों ने ठोकर खायी है...
यूँ तो दोनों का है वही चेहरा – वही रंग,
उतनी ही तारीखें और उतनी ही ठंड...
पर पहचान अलग है दोनों की,
अलग है अंदाज़ और अलग हैं ढंग...
एक अन्त है, एक शुरुआत,
जैसे रात से सुबह और सुबह से रात...
एक में याद है, दूसरे में आस,
एक को है तजुर्बा, दूसरे को विश्वास...
दोनों जुड़े हुए हैं ऐसे
धागे के दो छोर के जैसे,
पर देखो दूर रहकर भी
साथ निभाते हैं कैसे...
जो दिसंबर छोड़ के जाता है
उसे जनवरी अपनाता है,
और जो जनवरी के वादे हैं
उन्हें दिसंबर निभाता है...
कैसे जनवरी से दिसंबर के सफर में
११ महीने लग जाते हैं...
लेकिन दिसंबर से जनवरी बस
१ पल में पहुँच जाते हैं!!
जब ये दूर जाते हैं तो हाल बदल देते हैं,
और जब पास आते हैं तो साल बदल देते हैं...
देखने में ये साल के महज़ दो महीने ही तो लगते हैं,
लेकिन...
सब कुछ बिखेरने और समेटने का वो कायदा भी रखते हैं...
दोनों ने मिलकर ही तो
बाकी महीनों को बाँध रखा है,
अपनी जुदाई को दुनिया के लिए
एक नया साल (New Year) का त्यौहार बना रखा है..!
HAPPY NEW YEAR
SARAL VICHAR
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