एक बार एक संत ने अपने दो भक्तों को बुलाया और कहा आपको यहां से पचास कोस दूर जाना है। एक भक्त को एक बोरी खाने का सामान भर कर दिया
और कहा जो लायक मिले उसे देते जाना और एक को खाली बोरी दी । उससे कहा कि
रास्ते में जो भी अच्छा मिले उसे बोरी में भर कर ले जाए।
दोनों निकल पड़े। जिसके कंधे पर सामान था वह धीरे चल पा रहा था । खाली बोरी वाला भक्त आराम से जा रहा था ।
थोड़ी
दूर पर उसे एक सोने की ईंट मिली। उसने उसे बोरी में डाल दिया। थोड़ी दूर
चला फिर एक ईंट मिली, उसे भी उसने उठा लिया । जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया
उसे सोना मिलता गया और उसे वह बोरी में भरता हुआ चल रहा था। बोरी का वजन
बढ़ता गया और उसका चलना भी मुश्किल होता गया। उसकी सांस भी चढ़ने लगी।
दूसरा
भक्त जैसे-जैसे चलता गया, रास्ते में उसे जो भी मिलता उसको बोरी में से
कुछ सामान देता गया। धीरे-धीरे बोरी का वजन कम होता गया और उसका चलना आसान
हो गया।
जो बांटता गया, उसका मंजिल पर पहुंचना आसान हो गया और जो इकट्ठा करता रहा उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
दिल से सोचना कि हमने जीवन में क्या बांटा और क्या इकट्ठा किया। हम मंजिल तक कैसे पहुंच पाएंगे?
जिंदगी का कड़वा सच- आपको 60 साल की उम्र के बाद कोई यह नहीं पूछेगा कि आपका बैंक बैलेंस कितना है या आपके पास कितनी गाड़ियां हैं?
दो ही प्रश्न पूछे जाएंगे।
1. आपका स्वास्थ्य कैसा है?
2. आपके बच्चे क्या करते हैं?
प्यार बांटते रहो... यही विनती है...
SARAL VICHAR
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