चाणक्य नीति
* नियती तो यही कहती है कि अधिक पाना है, और अधिक पाने के लिए
खतरा उठाना पड़ता है। कुछ लोग खतरा नहीं उठाते, जीवन जैसे चल रहा है, बस
जीते चले जाते हैं । पर जो प्रगति करना चाहते हैं, ऊपर उठना चाहते हैं तो
जो कुछ उनके पास है उसे दांव पर लगाने से नहीं डरते । संभावना है कि हार
जाएं, कुछ न कर पाएं वे । पर ये जो कुछ कर दिखाने का प्रयास है, यही उन्हें
औरों से अलग बनाता है। भले ही वे हार जाएं, पर ये संतोष उनसे कौन छीन सकता
है कि उन्होंने कुछ अच्छा कर दिखाने का प्रयास तो किया।
*जब स्वतंत्रता के लिए आत्मा को बेचने का प्रश्न सामने आएगा, तब हम क्या करते हैं, यह देखना चाहिए। वह गुलामी किसी भी रूप में हो सकती है। सिर्फ देश की बात यहां नहीं की जा रही।
*
मुक्ति तो हमें शीघ्र मिलेगी, किंतु ध्यान रहे कि हमारी एकाग्रता हमारा
लक्ष्य बना रहे। कठिन पथ पर चलने पर धैर्य टूट जाता है। हृदय विचलित होने
लगता है। कई बार हम स्वयं से प्रश्न पूछ बैठते हैं। किंतु हमारा ध्यान सदैव
लक्ष्य पर बना रहे। फिर वह लक्ष्य हमसे कितनी ही दूर क्यों न हो ।
*समय से पहले कल्पना करना मूर्खता है।
SARAL VICHAR
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