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मन का सात्विक आहार | Man Ki Shanti



बुद्ध की कथाओं में आता है कि एक व्यक्ति बुद्ध के पास आया । बोला- मेरे पास सब कुछ है पर शांति नहीं है। बुद्ध ने कहा- वह बाद में बताऊंगा पहले तू अपना अंगूठा हिलाना बंद कर । वह बोला- नहीं तो, मैं तो नहीं हिला रहा । कुछ देर बाद वह फिर अंगूठा हिलाने लगा और बुद्ध ने उसे फिर कहा कि अंगूठा हिलाना बंद कर । बात यह थी कि उस व्यक्ति को ही नहीं पता था कि वह अंगूठा हिला रहा है।

कईयों की आदत होती है कि कभी हाथ हिलाएंगे, कभी पांव हिलाएंगे । शरीर को हिलाते रहेंगे और अजीब बात यह है कि उनको पता ही नहीं होता । उनको देखकर दूसरों को हंसी आ जाए कि आदमी इतना बेहोश भी हो सकता है।

जिनके मन बेचैन या शांत होते हैं, उनकी बॉडी लैंग्वेज़ भी वैसी ही हो जाती है।
यह अनकांशस आपके शरीर में हरकत हो रही है, यह आपके मन की बेचैनी का चिन्ह है। मन जैसा होगा, शरीर भी वैसा ही हो जाएगा । ऐसे ही गुस्सा भी है। वह भले आप न दिखाना चाहो पर आपकी शक्ल से पता चल जाएगा, वह चाहे फिर लालच हो तो भी आपकी शक्ल से पता चल जाएगा । आपने देखा होगा कि कोई अंजान आदमी नोट गिन रहा होगा तो यकायक सभी की नजर उस ओर चली जाती है।

मन का सात्विक आहार ( गुरु मां आनंदमूर्ति) | SATTVIC DIET OF THE MIND  - www.saralvichar.in


जब आपके मन में कोई चिंता उठती है तो ये चिंता आपके शरीर के केमिकल को खराब कर देती है। ऐसा जहर फैलता है कि फिर ब्लड प्रेशर, शुगर कम या ज्यादा हो जाएगा। उसी तरह चिंता की जगह प्रेम,

करुणा, मैत्री ऐसी भावनाएं उठेंगी तो निश्चित ही उसका प्रभाव भी चेहरे पर दिखेगा। अपने मन को समझने की कोशिश करें । यह अजीब बात होती है कि हम लोगों की कोशिश यह होती है कि दूसरे क्या कर रहे हैं?

 हमें हमारे मन का कुछ नहीं पता। दूसरे के घर में क्या हो रहा है यह हमें पता होना चाहिए। किसकी तिजोरी में कितना पैसा है, किस अभिनेता या नेता ने क्या किया या क्या कहा यह भी हमें पता होना चाहिए। हमारी इसी बर्हिमुखता ने हमें स्वयं से दूर कर दिया है। जो अपने मन की क्रियाओं को नहीं जान पाया वह परमात्मा के गहरे ज्ञान को कैसे जान पाएगा?

हमारे लिए जरुरी है कि अपने जीवन को ऊंचा उठाएं, श्रेष्ठ बनाएं। हर इंसान संसार रुपी दरिया में खेल खेल रहा है। बचपन में खिलौनों से, फिर जवानी में शराब, शबाब से। पर कब इस जीवन रुपी बगुले को मौत रुपी बाज झपट्टा मार लेगा ये कोई नहीं बता सकता।

ख्याल करिए कि आपके दिन की शुरुआत इसी ख्याल से हो कि शायद आज मेरा आखरी दिन हो । मौत की सूचना नहीं आएगी। मौत सिर्फ बूढ़े को आएगी यह नियम भी नहीं है।

फकीरों का यह ढंग है कि जब वह उठता है तो यह ख्याल करता है कि प्रभू शुक्र है कि हम रात में सोते-सोते नहीं मर गए । ये तेरी कृपा है। प्रभू यह दिन जो तूने दिया है इसे सत्कर्मो, सत् के चिंतन, दया, दान, निष्काम कर्म करते हुए बिताऊं ऐसी कृपा, ऐसी शक्ति देना ।
मैं आपसे पूछती हूं कि क्या आपके दिन की शुरुआत ऐसी ही होती है? मैं इस हक में भी नहीं हूं कि सुबह-सुबह आप लंबे धर्म शास्त्र के पाठ करो। क्योंकि मेरी दृष्टि में धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए बने ही नहीं हैं। जपुजी साहिब में यह कहीं नहीं लिखा कि मुझे सुबह शाम पढ़ो। यह तो समझने के लिए है। उस समय युद्ध का समय था । उस समय शांति का माहौल नहीं रह गया
था , तब उन्होंने अपनी वाणी में दे दिया कि सुबह दिन शुरु करने से पहले और रात में सोने से पहले इन पंक्तियों को पढ़ लेना ।

मैंने कईयों से इसकी चर्चा की। सार यही है कि महाराज ने यह नहीं कहा कि सुबह उठकर इसका पाठ करो। बाद में भाईयों ने ये कह दिया कि ४० पाठ करेगा तो तेरा यह केस सुधर जाएगा, सौ पाठ करेगा तो बेटी का ब्याह हो जाएगा।
यह जोड़-तोड़ व्यापार लाए हैं। यह गुरु साहिब ने नहीं दिया है। ये बाद में कहा गया है।

कभी-कभी ये कड़वे शब्द कहती हूं पर सच यही है कि चोरों को रब मिल जाएगा पर इन पण्डे, पुरोहित भाईयों को कभी नहीं मिलेगा । ये खुद अंधेरा फैला रहे है, रुपयों की खातिर परमात्मा के नाम को बेच रहे हैं और दूसरों को भी यही सिखा रहे हैं कि रट-रट-रट । महाराज कह रहे है समझ...।

कहे कबीर ऐसा गुर पायो जांका नाम विवेका, 

विवेक रूप गुरु मिला है मुझे ।

 क्या पढ़िए, क्या सुनिए, क्या वेद-पुरान सुनिए।

 पढ़े-सुने क्या होई, जो सहज न मिलिया । 

सिर्फ पढ़ो सुनो नहीं। गुन, भीतर ले जा । आप रोटी को चबाएं फिर भीतर न ले जाकर बाहर थूक दें तो क्या इससे आपकी भूख दूर हो जाएगी ? खाया हुआ भोजन हलक से उतर जाए फिर हजम भी हो जाए तब शरीर में ताकत आएगी।

इसी तरह संतों, पीरों, फकीरों की ये जो बाणीयां हैं ये वह आहार हैं जो तुम्हारा मन इसे खाए, तुम्हारी बुद्धि इसे खाए। फिर इसका लाभ होगा । आप किसी अस्पताल में सिर्फ बाहर से चक्कर लगाओगे और दवाई नहीं खाओगे, परहेज नहीं करोगे तो क्या बिमारी चली जाएगी?

ठीक इसी तरह से मंदिर, गुरुद्वारा भी एक अस्पताल है, संत का स्थान भी एक अस्पताल है। जहां धर्म ग्रंथ में सारी दवाईयां हैं। संत तो एक डॉ. है। संत को पता चलता है कि यह बहुत बेचैन है । जो बहुत बेचैन है, चित्त में क्लेश है। ऐसे व्यक्ति को अगर वह बोलेगा कि ध्यान कर तो ध्यान उससे नहीं होगा । ऐसे व्यक्ति को वह बोलेगा कि सेवा कर । सेवा करते-करते चित्त की शुद्धि होगी, सत्संग सुनेगा तब उसे पता चलेगा कि ध्यान क्या है। फिर ध्यान करेगा तो लाभ होगा । 

 यहां मैं देखती हूं कि लोग दौड़-दौड़ कर मंदिरों, गुरुद्वारों में जाते हैं, डॉक्टरों से मिलते ही नहीं, दवा खाते ही नहीं । तो चिंता के रोग दूर कैसे होंगे ? जीवन में आनंद के फूल कैसे खिलेंगे?

ओम

 

 SARAL VICHAR

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