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असली सुख और अध्यात्म का मार्ग | True Happiness & Spiritual Wisdom

 

जागृत सपना: मन और वैराग्य से जीवन की समझ  - www.saralvichar.in

 मान लो आपको एक स्वप्न आता है, उसमें आप देखते हो कि आप विदेश में बढ़िया गाड़ी पर कहीं जा रहे हो। उस समय सपना नहीं टूटेगा। सपना तो उस समय टूटेगा जब आपकी गाड़ी कहीं गड्ढे में या किसी चीज से टकराएगी और आपका सपना टूट जाता है।

सपना झूठ था, गाड़ी भी झूठी थी। वहां की खुशियां, वहां का एक्सीडेंट सब मिथ्या था। इस मिथ्या सपने से हटने के लिए जैसे मिथ्या से हटने के लिए मिथ्या एक्सीडेंट की या घटना की आवश्यकता होती है, वैसे ही यह संसार भी एक जागृत सपना है। जब तक सब ठीक चलता है, यह सपना टूटता नहीं है।

यही बात शास्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से कही गई है। उदाहरण के लिए भगवद्गीता में जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को कहा कि मुझे युद्ध के बीच में ले चलो, तब श्रीकृष्ण ने सारी सेना को छोड़कर अर्जुन के सामने दादाजी भिष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के सामने रथ ले जाकर खड़ा किया और कहा - "तुम्हें जानना है ना कि तुम्हारा युद्ध किससे हो रहा है। तुम्हें युद्ध दुश्मनों से नहीं, अपनों से करना है।"

दुश्मनों से तो कोई भी लड़ सकता है। हमारे शरीर में कोई जंतु अगर शरीर में प्रवेश करते हैं तो दवाई लेकर हम उनका नाश करते हैं। किंतु अगर हमारा ही मन हमें परेशान करे तो हम क्या कर सकते हैं? सबसे बड़ा युद्ध दुश्मनों से नहीं होता, युद्ध तो अपनों से होता है। तब व्यक्ति को समझ में आता है कि अध्यात्म किसे कहते हैं।

हम लोगों का भला करें, दान-धर्म करें, पूजा करें यह सब ठीक है। किंतु यह अध्यात्म नहीं है। यह सब कर्म हैं अध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए। यह केवल चिन्ह हैं इस राह पर चलने के लिए। जैसे किसी खाने का मेनू कार्ड देखकर हमारा पेट नहीं भरता, वैसे ही यह कर्म हैं।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ दुर्योधन के सामने खड़ा किया होता तो शायद परिस्थिती दूसरी होती। शायद अर्जुन एक भी प्रश्न नहीं पूछता। शायद सीधा युद्ध शुरु कर देता। किंतु भगवान चाहते थे कि अर्जुन आदि भौतिक, आदि दैविक क्षेत्र से ऊपर उठकर अध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करे। इसके लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है।

एक सूफी संत का शेर है -
"ये वही दर्दे दिल है जो उनको (ईश्वर) पाता है।
भगवान भला करे उनका, जो दिल दुःखाता है।"

यदि अर्जुन के मन में भगवान ने मोह का प्रसंग निर्माण नहीं किया होता तो भगवद्गीता का ज्ञान देने का प्रश्न ही नहीं खड़ा होता। ईश्वर ने मनुष्य और पशु में आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये समान ही दिए हैं। किंतु मनुष्य ही परमात्मा को पूर्ण रूप से प्रकट कर सकता है।

योग वशिष्ठ में अनेक कहानियां हैं। हमारे साधू संतों को कहानियां लिखने का शौक नहीं था। किंतु तत्व को समझाने के लिए शब्द अपूर्व पड़ते हैं।

एक बार वाराणसी में एक शास्त्रीजी थे। ब्रह्मचारी और कर्मठ। लोग उनके पास पढ़ने आते थे। एक सज्जन रामकृष्ण परमहंस के आश्रम से उनके पास आए। शास्त्रीजी ने कहा - "पहले बाहर जाओ, जहां चप्पल खोली है, वहां रामकृष्ण को रखकर आओ।"

साधक बाहर गए और फिर अंदर आए। तब शास्त्रीजी ने कहा - "अब मैं तुम्हें पढ़ाऊंगा।" इसका तात्पर्य यह नहीं कि शास्त्रीजी के मन में रामकृष्ण परमहंस के प्रति घृणा थी। सत्संग में आने के लिए मनुष्य का मन एकदम खाली होना चाहिए, जैसे छोटा बालक।


जब तक आप अपने मन और इच्छाओं के बंधन में हैं, तब तक संसार एक स्वप्न ही है। जाग्रत होने का अर्थ है अपने भीतर की वास्तविकता को देखना।

सबसे बड़ा युद्ध मन और अहंकार के बीच होता है, बाहरी दुश्मन केवल संकेत मात्र हैं।

अध्यात्म केवल कर्म करने से नहीं मिलता, कर्म केवल पथ दिखाने वाले चिन्ह हैं। वास्तविक ज्ञान अंतःकरण की शुद्धि में है।

वैराग्य का अर्थ वस्तुओं से मोह त्यागना नहीं, मन को भ्रम और भ्रमित इच्छाओं से मुक्त करना है।

ज्ञान का पहला चरण है अपने अनुभव और जीवन की वास्तविकताओं को देखना, बिना किसी भ्रम के।

साधना का असली उद्देश्य मन को स्थिर करना और आत्मा की दृष्टि साफ़ करना है।

अगर आप बाहरी चीजों से संतुष्टि खोजते रहेंगे, तो असली सुख कभी नहीं मिलेगा।

जीवन में आहार, निद्रा, भय, मैथुन सभी समान रूप से दिये गए हैं, पर मनुष्य ही इन्हें समझकर आत्मा की ओर अग्रसर हो सकता है। मनुष्य अन्य प्राणियों से इस मामले में अलग है कि वह इन चीज़ों के माध्यम से सीखकर और समझकर अपने आध्यात्मिक विकास और आत्मा की ओर अग्रसर हो सकता है।

गुरु का मार्गदर्शन इसलिए आवश्यक है कि वह आपके भीतर छिपी अशुद्धियों को पहचान कर आपको वास्तविकता की ओर ले जाए।

छोटे-छोटे अनुभव और कहानियां हमें गहन सत्य की ओर ले जाती हैं; इन्हें हल्के में न लें।


- अनुभवनंदा सरस्वती
 
 
SARAL VICHAR

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Topics of Interest

असली सुख, आत्मा की दृष्टि, अध्यात्म, ज्ञान, वैराग्य, मन की शुद्धि, guru guidance, जीवन अनुभव, inner peace, सत्संग, self-realization, mindfulness

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