एक गुरु ने शरीर छोड़ते हुए शिष्य से कहा
कि कामिनी-कंचन-कीर्ति से बचना । शिष्य आश्रम से जा रहा था तो जंगल में
सोने की खान मिली। अंदर झांका तो देखा सोना है तो गुरु का वचन याद आया कि
सोने से दूर रहना। वहाँ से हट ही रहा था कि मन में आया कि गुरु के लिए
अच्छा सा मंदिर बनवाऊं। गुरु का नाम प्रकट करूंगा और सोना लेकर चलने लगा।
रास्ते में चोरों ने लूट लिया। मारा पीटा और पेड़ से बाँधकर छोड़ दिया।
उसको बहुत पश्चाताप हुआ कि गुरु का वचन सत्य नहीं किया। लोभ की वजह से सोने
में वृति गई। अभी कामिनी और कीर्ति से बचकर रहूंगा।
किसी तरह से
रस्सी की बंधन से छूटकर आगे चला। जंगल घना था। बारिश हो रही थी, रात पड़
गई। झोपड़ी दिखी तो पूछा कौन रहता है। जवाब मिला वैश्या। वह सतर्क हो गया
और रात काटने के लिए चुपचाप झोपड़ी के एक कोने में लेट गया। थोड़ी देर में
वैश्या का मन चंचल हो गया। उसन कहा, आप तो साधू हैं, अंदर पलंग पे लेट
जाईए, कुछ न होगा। साधू भी उसकी बात में आ गया। अंदर चला गया। फिर मन वहीं
लग गया और उसके दो बच्चे भी हो गए। कुछ दिन बाद उसने देखा वैश्या किसी और
से बात कर रही थी। वैश्या तो आखिर वैश्या ही होती है। दुःख में गुरु का वचन
याद आया कामिनी-कंचन से बचकर रहना। वह वहाँ से भाग उठा। उसने अपने से
पक्का किया कि कीर्ति से बच के रहूंगा।
वह गंगा तट पर मौन में रहने
लगा। मौन की तपस्या से उसमें शक्ति आ गई। उन दिनों वहाँ के राजा का बेटा
बहुत बिमार था और मरने वाला हो गया था । राजा का वजीर कोई संत की तलाश में
था कि अंत समय किसी तपस्वी का आर्शीवाद मिले। वजीर ने जब सब बात बताई तो
इसने कहा मेरे में शक्ति है, मेरे सिर का एक बाल राजकुमार के माथे पर रख
देना, वह ठीक हो जाएगा।
देखते ही देखते शहर में बात फैल गई। सब लोग
दूर-दूर से इसके बाल लेने को आने लगे। ये नहीं दे तो वे लोग नोच नोच कर ले
जाएं। आखिर सिर पर एक भी बाल नहीं बचा तो गंजे सिर पर हाथ रखकर ठंडी सांस
ली कि कीर्ति ने बुरा हाल कर दिया।
सिद्धांत- सच्चा ज्ञान चाहिए तो गुरु से गरीबी और निंदा लो और कामिनी से दूर रहो।
SARAL VICHAR
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