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चिंता छोडो, ईश्वर पर विश्वास रखो | Faith, Positivity & Happy Life Tips

 

ईश्वर का उपकार  | ISHWAR KA UPKAAR | THANK GOD| www.saralvichar.in



* दाँत न थे तब दूध दियो, अब दाँत दिए तो का अन्न न दैहे ? 

जीव बसे जल थल में, सबकी सुधि लैहे,

काहे को सोच करे मन मूरख, सोच करे कछु हाथ न ऐहें। 

जान को देत, अजान को देत, जहान को देत सो तोकू न दैहे ? ।।

ईश्वर ने हमारे जन्म लेने से पहले ही हमारे भोजन का प्रबंध कर लिया । जब हम छोटे थे तब हमें दांत नहीं थे तब ईश्वर ने हमारे लिए मां के आंचल में दूध दे दिया। अब दांत दिए है तो वह हमें अन्न भी जरुर देगा। वह ईश्वर हमें सुबह भूखा उठाता जरुर है पर कभी भूखा सुलाता नहीं है । उसे तो हमारी चिंता रहती है कि मेरा बच्चा भूखा न रहे। जैसे हमारे मां-बाप हमारी चिंता करते हैं वैसे ही ईश्वर भी हमारा पिता है । वह ईश्वर सबको भोजन देता है। हम तो मूरख यूं ही चिंता करते हैं।

हम तो कल-परसों की चिंता करते रहते हैं कि कल हमारा क्या होगा? कल मेरे बच्चों का क्या होगा? एक छोटी सी कहानी है ...

एक अमीर सेठ था । एक बार उसने अपने मुनीम से कहा कि तुम हिसाब लगाओ कि हमारे पास कितना पैसा है?

मुनीम ने हिसाब लगाया और बोला कि जिस प्रकार हम आज पैसा खर्च करते हैं, उसी तरह आगे भी खर्च करेंगे तो सात पीढ़ियों तक आराम से खा सकें, इतनी जमा पूंजी है।

सेठजी को चिंता हो गई कि मेरी आठवीं पीढ़ी क्या खाएगी? इस चिंता में वह बहुत बिमार हो गया । बहुत इलाज कराने पर भी उसकी चिंता नहीं मिटी । उसका एक दोस्त आया । उसने सब बातें सुनी। उसने कहा कि मैं इसका इलाज जानता हूं। अगर तुम कुछ खाने का सामान लेकर एक बुढ़िया को देकर आओ अगर वह स्वीकार कर लेगी तो तुम्हारी बिमारी दूर हो सकती है। मरता क्या न करता । वह उस बुढ़िया को सामान देने के लिए चल पड़ा। दोस्त से बुढ़िया का पता लेकर वह सामान लेकर गया। उसके आने का कारण जानकर बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि देखो कि आज रात के खाने का सामान है? बेटी बोली कि-हां अम्मा है, सुबह ही कोई दे गया था।

सेठजी ने याचना की कि यह सामान कल के लिए रख लो । तो बुढ़िया बोली कि हम दो बार किसी से सामान नहीं लेते । कल की कल देखी जाएगी । हमारी सात पीढ़ियों से यही चलता आ रहा है।

सेठजी को बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं आठवीं पीढ़ी की चिंता कर रहा था। इन लोगों की सात पीढ़ियां ऐसे ही चलती आ रही हैं। इन्होंने कल की भी कभी चिंता नहीं की। ईश्वर मेरे परिवार के बच्चों को कमाने की ताकत भी जरुर देगा । मैं ही व्यर्थ चिंता कर रहा हूं। बस घर आते-आते उसकी बिमारी ठीक हो गई । 

बदलती दुनिया को देखकर ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि कल की बिल्कुल भी चिंता ना करें पर इतनी भी चिंता ना करें कि आज का मजा ही खो दें।
 
 
 SARAL VICHAR

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