नफरतों का असर देखो
जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी
और बकरा मुसलमान हो गया ।
मन्दिरों में हिन्दू देखे
मस्जिदों में मुसलमान,
शाम को मैखाने गये
तब जाकर दिखे इंसान ।
यह पेड़ यह पत्ते यह शाखें भी परेशान हो जाएँ,
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुसलमान हो जाएँ।
सूखे मेवे भी यह देख कर परेशान हो गये,
न जाने कब नारियल हिन्दू
और खजूर मुसलमान हो गये ।
जिस तरह से धरम मजहब पे
रंगों को भी बाँटते जा रहे है,
कि हरा मुसलमान का
और लाल हिन्दू का रंग है...
तो वह दिन दूर नहीं जब सारी
की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुसलामानों की हो जाएंगी,
और हिन्दुओं के हिस्से बस
गाजर और टमाटर ही आएंगे ।
अब समझ नहीं आ रहा
यह तरबूज़ किसके हिस्से जाएगा,
यह तो बेचारा ऊपर से मुसलमान
और अंदर से हिन्दू रह जाएगा ।
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कहीं मंदिर बना बैठे ,कहीं मस्जिद बना बैठे ।
हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की,
कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे।"
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