सेवा भाव से कार्य सुगंधित हो जाता है
कोई किसी से मिले तो बातचीत में यह सवाल सामान्य है कि आप करते क्या हैं। एक बार यही सवाल सार्वजनिक रूप से किसी ने मुझसे पूछ लिया। मैं उस अंजान व्यक्ति के सवाल का जवाब देता उससे पहले पास खड़े मेरे परिचित व्यक्ति ने उत्तर दिया और सुनकर मैं चौंक गया। उत्तर था, ये चंदन का व्यापार करते हैं। मैं उनकी ओर देखने लगा तो बोले ठीक तो है। आप कथाएं करते हैं जो बिलकुल चंदन के व्यापार की तरह है। चंदन के व्यापार में लेने वाले को, देने वाले को, बल्कि जो इधर से उधर करता है उसे भी सुगंध मिल जाती है। मतलब जो भी इस व्यापार से जुड़ा, सुगंधित हो गया।
भगवान की कथा भी ऐसी ही होती है। फिर मेरे मन में आया क्यों न इस विचार को आगे बढ़ाया जाए कि केवल चंदन का व्यापार ही क्यों? हम कोई भी काम करें, यदि नीयत साफ है, पीछे सेवा का भाव है तो वह कार्य सुगंधित हो जाएगा, क्योंकि सदकार्यों में सुगंध होती ही है। ऐसा करने के लिए अपने हर कर्म में अकर्ता का भाव पैदा करना होगा। मतलब आप नहीं कर रहे, कोई और करवा रहा है। साधारण भाषा में कहेंगे चाहो मत, मांगो मत, किए चले जाओ। हमारे हिस्से का, हमारे भाग्य का अपने आप मिल जाएगा। ये धन-दौलत सब यहीं रह जाएगी, लेकिन कर्मों की सुगंध हमारे जाने के बाद भी रहेगी।
-पंडित विजय शंकर मेहता
SARAL VICHAR
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