योगीराज श्रीकृष्ण की
गीता के संदेश की स्थिति देश काल और स्थान के अनुसार वर्तमान में भी ज्यों
की त्यों है। द्वापर का यह महाभारत और कुरुक्षेत्र कलियुग में नये-नये रूप
में हमारे सामने आता है। लेकिन दृष्टिभ्रम ये है कि कुरुक्षेत्र के महासमर
की चकाचौंध में भ्रमित हो जाते हैं । परिणामतहः जीवन पर्यंत यह १८ दिन का
महाभारत हमें शक्तिहीन करता रहता है। विडम्बना यह है कि देश और दुनिया में
हर व्यक्ति एक भयानक युद्ध मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, सांसकृतिक, सामाजिक
और राजनीतिक स्थिति से जूझ रहा है किंतु वह अपनी अज्ञानतावश उसे नहीं
समझता है।
अगर कोई गांडीवधारी अर्जुन की ही तरह बनना चाहता है, वह
सही के लिए लड़ना चाहता है, तब उसे अपने आसपास योगीराज भगवान श्रीकृष्ण को
खोजना होगा । उस स्थिति में मृत मानसिकता को गीता की चेतना, जीवन के हर
क्षेत्र में सहायक होगी । याद रहे योगीराज श्रीकृष्ण ने वीर अर्जन को
धर्मसत्य के पक्ष के लिए न केवल युद्ध के लिए प्रेरित किया बल्कि उसे हर
समय दिशा निर्देश भी दिये । उनका यही मार्गदर्शन वीर अर्जुन की महाभारत में
विजय का मूलाधार था।
द्वापर की स्थितियों की कल्पना करें। द्वापर में पांडुपुत्र अर्जुन के विश्वनीय भाई थे। उसके भाई शूरवीर और स्नेह करने वाले थे । उनके भातृत्व प्रेम पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता था । आज के कलियुगी रंगमंच में अर्जुन को चार भाई तो क्या एक भाई भी पूरी तरह उसके साथ नहीं मिलेगा । इस बार अर्जुन को अकेले नितांत रणभूमि में पांचजन्य फूंककर लड़ना होगा । ऐसे में गीता हमें यह शक्ति देती है कि मौजूदा हालात में सही बात के लिए कैसे लड़ा जाए? महाभारत के इस युद्ध में अस्त्र-शस्त्र और वाहन आदि भी नये आश्चर्यजनक रुपाकार में हैं ।
महाभारत काल में अर्जुन ने अपनी
दृष्टि से हाथ से चलने वाले शस्त्रों से युद्ध किया । सेना हाथी घोड़े पर
सवार होती थी। महाभारत काल और कलियुग में अंतर यह भी है कि उस समय युद्ध के
नैतिक मूल्य थे । कलियुग में नैतिकता का नामलेवा ही नहीं मिलेगा । सो
युद्ध के मापदंडों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। इस समय वीर अर्जुन को अपने
सगे भाईयों से भी सावधान रहना होगा । रोचक यह है कि कलियुग में अर्जुन के
सामने नई और जटिल समस्या है । उसकी भावात्मकता की ओर भी कडी अग्निपरिक्षा
है। यह ऐसे भाईयों से घिरा है, जो कभी भी उसके कट्टर शत्रुओं में बदल सकते
हैं। इससे घबराने और निराश होने की जरुरत नहीं है । योगीराज श्रीकृष्ण की
गीता की चेतना हर समस्या का हल पेश करती है।
गीता का पहला अध्याय आज
के संदर्भ में गीता को पढ़ना और उस पर चलना उसी स्थिति में नई शक्ति देता
है कि जब आप सही रास्ते पर हैं, आपका जीवन सत्य के मार्ग पर है।
गीता
की अनंत उर्जा बेकार है यदि आपका मन वर्तमान परिदृष्य में दुर्योधन की मति
रखता है। आपको स्वयं को पहचानने या स्वयं के बारे में फैसला करने में पूरी
तरह निष्पक्ष होना है। आपको स्वयं ही अपने मन का साक्षी बनना है।
यहां
सावधान करना होगा कि दुर्योधन की भांति लालची मन और अर्जुन की भांति विजयी
होने की कामना में गीता चेतना कोई मदद नहीं करेगी । यह तो उहापोह और
अंतर्विरोध को जन्म देगी। यह भयानक होगा । गीता सरल और शुद्ध हृदय रखनेवाले
को मार्गदर्शन कर सफलता की ऊंचाईयों पर ले जाने वाली है। अतः अपने अंदर को
साफ करना जरुरी है। यह आंतरिक सफाई गीता की उर्जा को लेने में समर्थ है।
याद
है- अर्जुन ने कौरवों और पांडवों की सेना में विशाल सेना दूसरे पक्ष में
देखी। उसका भय स्वाभाविक था । यहां काल बदला है, हालात नहीं। आपको आपके
विरोध में चौंकाने वाले चेहरे मिलेंगे । इसलिए कभी हतोत्साहित या हारने की
बात नहीं है। यह होना ही था । कल जो अपने थे, आज उनका पराया होना कोई नई
बात नहीं है। कलियुग में अचरज तो तब होता अगर वे सत्यनिष्ठा के साथ धर्म का
पा लेते। अधर्म की तरफदारी कलियुग का चरित्र है।
आप अंदर से उबलें
या शांत रहें। आपको जीवन के इस नाटक में साक्षी होकर रहना है। अपनी योजना
को अंतिम रूप देना है। आपका गुस्सा आपको कमजोर करेगा । इसके विपरित शांत
रहना शक्ति देगा ।
वीर अर्जुन का मनोबल भी विपक्षी सेना में अपने
सगे-संबंधियों को देखकर टूट गया था । यद्यपि अर्जुन की सेना में भी
महारथियों की कमी नहीं थी। केवल कमी इसकी थी इन महाबलियों में से कोई भी
उसमें
प्रेरणा और उर्जा को संचारित करने वाला नहीं था। इन हालातों में योगीराज श्रीकृष्णजी की गीता का संदेश ही अर्जुन के काम आया।
वीर
अर्जुन ने भी श्रीकृष्णजी से पूछा यदि मैं कौरवों की सेना का विनाश करता
हूँ तो क्षत्रियों की विधवाओं के कारण संपूर्ण वंश की शुद्धता खतरे में पड़
जाएगी । अर्जुन को समाज में अनैतिकता फैल जाने का डर था ।
अर्जुन का विचार था कि यह पाप कर्म है।
श्रीकृष्ण
जी ने समझाया कि उस समय तक कोई कर्म पाप कर्म नहीं है, जब तक तुम सत्य के
रास्ते पर हो। श्रीकृष्णजी ने निर्लिप्त होकर कर्म करने की प्रेरणा दी।
जिसमें सही के लिए कर्म किया जाए तो उस कर्म का दुष्फल नहीं मिलता। वह केवल
उस ईश्वर की शक्ति को चलाने का एक माध्यम है। क्योंकि पराशक्ति सत्य के
लिए युद्ध करने करने के लिए किसी को तो चुनेगी । वह आप क्यों नहीं । आज के
हालात में नवअर्जुन को नवचेतना से युक्त होकर अपने पवित्र लक्ष्य के लिए
महासमर में कूदना ही होगा। ।
SARAL VICHAR
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