आपकी किस्मत पूरी तरह से आपके हाथ में
है और किसी के हाथ में नहीं ।
क्या आप ये बात मानते हैं? अगर आप कहते हो
हां मानते हैं तो शायद आप झूठ बाले रहे हो। अगर मानते होते तो क्या कभी
किसी को देखकर ये नहीं कहते कि उसकी किस्मत अच्छी है, मेरी खराब है। मेरे
साथ ही बुरा क्यों होता है।
क्या आप नहीं कहते । चलो अच्छी बात है। वैसे जब हमारा कभी बुरा वक्त आता है तो मन में ये ख्याल जरुर आता है।
एक
छोटा उदा. - एक बच्चा मध्यमवर्गीय परिवार का था । वह अपने मंमी-पापा के
साथ एक छोटे से घर में रहता था। उसके पापा के पास एक पुराना स्कूटर था।
जिससे वह अपने पापा के साथ स्कूल जाता था ।
उसके घर के सामने ही
एक बड़ा बंगलो था। एक बच्चा भी उसमें अपनी मम्मी पापा के साथ रहता था।
उनके पास बेहिसाब पैसा था | एक बड़ी गाड़ी थी। उसे उनका शोफर (ड्राईवर)
चलाता था सुविधाएं थीं । कई नौकर थे।
इन सबको देखकर आप लोग क्या कहेंगे ? किसकी किस्मत अच्छी है? आप तो शायद यही कहेंगे कि अमीर बच्चे की किस्मत अच्छी है।
अब
सच्चाई को देखते हैं । अमीर बच्चा अपने बंगलो में रोज शाम को खड़ा होता था
। वह सामने खेलते हुए उस बच्चे को देखता जो दूसरे बच्चों के साथ खेलता
रहता । देखता और मन ही मन रोता कि काश! मैं भी दूसरे बच्चों के साथ खेल
पाता। क्योंकि उसे इजाजत नहीं थी कि वह बाहर जाकर खेले। इसकी शायद वजहें
थीं कि उनका स्टैंडर्ड नहीं कि वह बच्चों के साथ नीचे जाकर खेले । या
सिक्यूरिटी को देखते हुए शायद उसे नीचे जाने की मनाही थी।
आईए उस
बच्चे की नजर से देखते हैं। हां हम बड़े हो जाते हैं तो पैसा ही हमारे लिए
सब कुछ होता है। किंतु एक बच्चे को पैसे से क्या लेना-देना? बच्चे की
जिंदगी में सबसे बड़ी चीज क्या है? खेल! उसका बचपन जो उससे छीन लिया गया ।
उसके
पापा के पास उसके लिए टाईम नहीं है। मम्मी किटी पार्टी में बिजी है।
शॉपिंग, सोसायटी सब कुछ है। जैसे-जैसे पैसा आता है, जीवनशैली ही बदल जाती
है। टाईम ही नहीं रहता बच्चों के लिए ।
फिर बच्चों के पास कोई
विकल्प नहीं होता वह अपनी उम्र से ५० साल बड़े लोगों के साथ खेलने के सिवा ।
घर चाहे कितना भी बड़ा हो।
क्या
उसे मजा आएगा? खुशी छिन गई, हंसी छिन गई। वह घर में ही बैठा रहता है।
पिंजरा भले सोने का हो, किंतु रहता तो वह पिंजरा ही है। पूरा कमरा खिलौनों
से भरा हो किंतु उसमें उसे मजा नहीं आएगा
दूसरा बच्चा मजे से जिंदगी
गुजार रहा है। उसके पास ज्यादा खिलौने नहीं हैं। किंतु वह जब कभी-कभार
सामने वाले बच्चे को देखता है। बड़ा घर है, बड़ी गाड़ी है, सुविधाएं हैं,
नौकर हैं, तो वह सोचता कि काश! उनके पास बड़ी गाड़ी होती । इतने
कपड़े-खिलौने होते।
अब बताईए किसकी किस्मत अच्छी ? दोनों की किस्मत
थोड़ी खराब थोड़ी अच्छी है। जिस वक्त हम उन चीजों की तरफ देखते हैं जो
चीजें हमारे पास नहीं हैं तो हमें हमारी किस्मत बुरी दिखाई देती है।
अपनी सोच को बदलना है। ये हमारे हाथ में होता है कि हम नकारात्मक सोचते हैं कि सकारात्मक ।
मछली पंछी को देखकर सोचे कि मैं ऊड़ क्यों नहीं
सकती या पंछी ये सोचे कि मैं पानी में तैर क्यों नहीं सकता? कोई सज्जन जो
५०-५५ साल का हो, हाई क्लास गाड़ी में जा रहा हो । उसे देखकर एक नवयुवक
सोचे काश! मेरे पास भी इतना पैसा हो, अच्छा बिजनेस हो । वह सज्जन युवक को
देखकर सोचे कि काश ! मुझमें भी इतनी एनर्जी होती। वे दिन फिर लौटकर आ जाते।
शादीशुदा
लोग अपनी बीवी में बुराई देखना शुरु करते ही अपनी किस्मत खराब समझेंगे ।
हम सभी में कुछ कमजोरियां हैं, कुछ स्ट्रांगनेस हैं। हालात के अनुसार
किस्मत अच्छी-बुरी हो जाती है। हमें हर स्थिति में खुश रहना है।
वैसे भी किसी इंसान में या हालात में अच्छाई देखकर हम किसी पर अहसान नहीं करते । बल्कि हम अपनी किस्मत को अच्छा करते हैं ।
-संदीप महेश्वरी
SARAL VICHAR
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