ईश्वरचंद विद्यासागर एक करुणामय और परोपकारी व्यक्ति थे।
एक बार उन्हें पता चला कि जयराज नामक दानवीर, परोपकारी, दयालु सज्जन की
मृत्यु हो गई और उसकी स्त्री के पास दांह-संस्कार हेतु पैसे नहीं हैं।
विद्यासागर
जयराज को जानते तक नहीं थे। बस पूछताछ करके उसके घर पहुंच गए। जयराज के
पास रोती बिलखती महिला को ढांढस बंधाते हुए विद्यासागर ने कहा- भाभी, जय
बाबू से मैंने कुछ दिन पूर्व कर्ज लिया था में कुछ रुपए लेकर आ ही रहा था
कि यह दुःखद समाचार मिला । कृपा करके यह रुपए ले लिजिए। बाकी मैं धीरे धीरे
चुका दूंगा।
भविष्य में भी विद्यासागर जयराज के परिवार के लिए कुछ
रुपए भेजते रहे। कुछ वर्षों बाद जयराज की विधवा को वास्तविकता का पता चला तो
वह उनके पैरों पर गिरकर रोने लगी और कहा- 'आप हमारे लिए इतना बड़ा झूठ
बोले, हम इस कर्ज को कैसे चुका पाएंगे?"
विद्यासागर बोले, 'यदि झूठ पवित्र हो तो बोलने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।'
-------
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बड़े पाबन्द थे। जब वे कॉलेज जाते तो रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियां उन्हें देखकर ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे पीछे नहीं चलते। एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। "कृपया बेकार मत बैठिये। यहां पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिये।" साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर...
-------
कलकत्ता नगरी। एक आदमी घूमने निकला। रास्ते में एक बूढ़े को चिंता में मग्न सिर झुकाये देखा तो उनसे रहा नहीं गया। हमदर्दी से पूछा—भाई तुम इतने परेशान क्यों हो ? बूढ़े ने अनजान व्यक्ति को अपना दुखड़ा सुनाना उचित न समझ कर टालने की कोशिश की। परन्तु आगन्तुक ने और अधिक सहानुभूति जताते हुए पूछा—शायद मैं आपकी कुछ मदद कर सकू। बूढ़ा कुछ आश्वस्त होकर बोला, मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ। बेटी के विवाह के लिये एक महाजन से कर्ज लिया था। परन्तु उसे लाख कोशिश करके भी चुका नहीं सका। अब उसने मुकदमा दायर कर लिया है। समझ में नहीं आता कि क्या करूँ और उनका कर्ज किस प्रकार चुकाऊँ । उस व्यक्ति ने गरीब ब्राह्मण से पूरा विवरण प्राप्त किया, जिसमें मुकदमें की अगली तारीख तथा अदालत का नाम भी शामिल था। मुकदमे की निश्चित तारीख पर वह ब्राह्मण घबराया हुआ अदालत में पहुँचा और एक कोने में बैठकर अपने नाम की पुकार का इन्तजार करने लगा। काफी देर बाद भी जब पुकार नहीं हुई, तो वह और भी चिंतित हुआ । घबराकर उसने अदालत के अहलकारों से पूछताछ की, तो पता चला कि किसी ने उसके कर्ज की पूरी रकम जमा करवा दी और मुकदमा खारिज हो गया है। ब्राह्मण को आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई । उसने पता लगाया तो उसको जानकारी मिली कि उसका कर्ज उतारने वाले धर्मात्मा पुरूष वही थे, जो एक दिन सड़क के किनारे उससे दु:खी और चिंता में मग्न बैठे होने का कारण पूछ रहे थे। वे उदारता के अनुपम रूप थे— बंगाल के महान समाज सुधारक तथा परोपकारी ईश्वरचंद्र विद्यासागर।
SARAL VICHAR
-----------------------------------------------
Topics of Interest
Eshwarchandra Vidyasagar biography, Karunamay aur paropkari life, Vidyasagar social reformer, Helping poor stories, Kindness and truth, Time discipline habit, Vidyasagar inspirational life, Selfless service examples, Humanity and compassion, Vidyasagar moral values, Social service in Bengal, Vidyasagar generosity stories
0 टिप्पणियाँ