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दिखावे से दुःख:- सच्चा सुख कैसे मिले? | DIKHAVE SE DUKH - SACHA SUKH KAISE MILE? | How To Find True Happiness In Hindi By Saral Vichar


दिखावे से दुःख:- सच्चा सुख कैसे मिले? | DIKHAVE SE DUKH - SACHA SUKH KAISE MILE? | How To Find True Happiness In Hindi By Saral Vichar

कई बार इंसान के पास जो होता है उसे बढ़ा- चढ़ा कर दिखाता है।

दुनिया सब जानती है। दुनिया झूठी तारीफ करती है।

जिसको जितना आपसे सुख होता है। उतना ही साथ देता है।

दुनिया में चंद लोग ही बिना स्वार्थ के साथ चलते हैं।

आप घर पर खीर खाकर आए हैं... अगर आप लोगों को बताएं तो लोगों को क्या लाभ ।
खीर तो आपने खाई है, पेट तो आपका भरा है।

एक औरत ने बहुत मंहगे हीरे की अंगूठी बनवाई और पहन ली और मोहल्ले के चक्कर लगाने लगी। कभी सिर पर हाथ रखती तो हाथ दिखाकर कहती आपका मकान बढ़िया बना है। उसको अपनी अंगूठी दिखानी थी।
मोहल्ले में किसी ने उसकी अंगूठी को नहीं पूछा। आखिर उसने फैसला किया कि मोहल्ले वालों को खाना खिलाया जाए। सब को संदेशा भेजा गया। सामान लाया गया। सामान तैयार किया गया। जिस हाथ में अंगूठी पहनी थी। वह ऊंगली खड़ी करके इशारा करने लगी कि वहां पर बैठो।
खाना पूरा हुआ। लोगों ने धन्यवाद दिया, चले गए। मगर अंगूठी को फिर भी किसी ने नहीं पूछा। उसको अंगूठी पहनने का इतना सुख नहीं मिला जितना लोगों के न पूछने का दुःख लगा। यह दिखावे का दुःख है।

ऐसे कई उदारहण हैं। किसी ने अच्छा मकान बनाया है तो वह भी यही चाहता है कि लोग उसकी तारीफ करें। कई लोग सिर्फ दिखावे की जिंदगी जीते हैं। रोज शेव करते हैं ताकि पता न चले उनकी दाढ़ी सफेद हो चुकी है। उनका काफी टाईम असली चीजों को नकली बनाने में लग जाता है। उससे सुख की बजाए दुख मिलता है।

आप कितना भी सजो पर संसार को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं।
ऐ इंसान तू ईश्वर के आगे सज, अपने आप को ईश्वर का बंदा समझ । उसके बताए रास्ते पर चल। तू प्रदर्शन मत कर।

आज सारा झगड़ा प्रदर्शन का है। तू अपनी जिंदगी का सफर सादगी से गुजार। दुनिया के पास बहुत कुछ है। बैंक भरे पड़े हैं। लाकर भरे पड़े हैं। अच्छे से अच्छे मकान फैक्टरी हैं। लाखों रुपये रोज कमाने वाले हैं। तू किस बाग की मूली है। अगर तूने और सीखना है तो शम्शान में जाकर देख लंम्बी-लंबी कार वाले जा रहे हैं। जिनके पास सब कुछ था, मगर सब यहीं रह गया। इसलिए दिखावा मत कर। नाजायज पैसा इकट्ठा मत कर और जो है उसे दुनिया की नजरों से बचा के रख... तभी कल्याण होगा।
आज के ज़माने के हिसाब से कहे तो जिसके पास पैसा है वो सब कुछ करे इसमें कोई हर्ज नहीं पर वो पैसा किसी का खून चूसकर कमाया नहीं गया हो... ऐसा नहीं करें। अगर मेहनत का पैसा होगा तो इंसान खर्च करने में भी सोचता है ।




एक बार एक बड़े से मॉल में किसी बुजुर्ग को उद्घाटन के लिए बुलाया।
उद्घाटन के बाद माल के मालिक ने उनसे कहा कि इस मॉल में हजारों चीज़ें हैं। आप इसमें से कुछ भी अपनी पसंद का ले लीजिए।
उस बुजुर्ग ने कहा- मुझे इसमें से एक भी चीज जीने के लिए जरूरी नहीं लगती।
उसने कहा- मुझे तो आश्चर्य होता है कि लोग इन गैर जरूरी चीजों का इस्तेमाल करते कहां हैं?

एयर फ्रेशनेस के बिना किसकी सांस रुक गई?
फेस वॉश के बिना कौन काला हो गया? होम थिएटर के साथ कौन कलाकार बन गया?
कंडीशनर से किसके बाल मुलायम काले हुए हैं?
जो डाइनिंग टेबल का इस्तेमाल करते हैं क्या उनके घुटने नहीं दुखते?
दिमाग पर जोर डाल के देखिए कि हैंड वॉश के बिना आपके कौन से दादा के पेट में कीड़े पड़ गए?
डियो जैसी चीजें लगाकर हम प्रकृति को ही चुनौती ही दे रहे हैं। जो वातावरण के लिए नुकसानदायक है।
इनहेलर के बिना भी कुत्ते के सुनने की शक्ति बहुत अच्छी है। बिना अलार्म के भी मुर्गा वक्त पर बांग देता है।
दरअसल इंसान पैसा खर्च करके भी दुखी होने की चीज खुद ही खरीदना रहता है।

इंटरनेट बंद तो दुखी.. मोबाइल खराब तो दुखी..
मोबाइल का चार्जर खराब हो तो दुखी... लाइट चली जाए तो भी दुखी... मैचिंग कपड़े ना मिले तो दुखी।

आजकल इंसान 10 मिनट में 20 तरह से दुखी होता है। यह सब देखा - देखी का खेल है। सच तो यह है कि सुखी होने के लिए बहुत कम खर्च होता है। लेकिन दूसरों को दिखाने में कि मैं कितना सुखी हूं... इसी में बहुत ज्यादा खर्चा होता है।
जैसे-जैसे सुविधाएं बढ़ रही है, वैसे-वैसे दुखी होने के रास्ते भी बढ़ते जा रहे हैं।
खुद सुखी होने के लिए खर्च कीजिए। दूसरों को दिखाने के लिए नहीं।


SARAL VICHAR



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