मन को अशांत कौन करता है?
तुम्हारी इच्छा और तुम्हारे मन का द्वेष । अगर इन दो चीजों को मन से निकालें तो हम शांत रह सकते हैं। आप कहोगे कि हम तो गृहस्थी हैं, इच्छा कैसे छोड़ सकते हैं?इच्छा का अर्थ यह नहीं कि भूख लगे तो रोटी की चाह न करो। अगर मुंह में मिर्ची लग जाए तो मीठा खाने की इच्छा न करो। इच्छा तो वह है कि 'भूख' पर सामने दाल-भात है तो भी हम यह सोचें कि काश! यहां पर पिज्जा बर्गर होता। इससे सामने जो चीज है उसका भी मजा नहीं आएगा और जो नहीं है उसको याद कर रहे हों और दुखी हो रहे हो। धीरज और स्वीकार करने का गुण हम में होना चाहिए।
एक बार सुकरात से किसी ने पूछा- दुनिया में सबसे अच्छा शहर कौन सा है? सुकरात- ये ही शहर, जहां हम हैं। किसी और ने कहा- आप ऐसे कैसे कह सकते हैं कि ये ही अच्छा शहर है।
सुकरात - चूंकि में यहां रहता हूं, इसलिए ये ही सबसे अच्छा है।
ऐसे ही हम अपने पर नजर डालें । जो कद में लम्बा होगा वह कहेगा कि मैं ज्यादा लम्बा क्यों हूं? सांवला कहेगा- मैं गोरा क्यों नहीं हूं।
जो हमारे पास होता है हम उसकी सराहना नहीं करते। जो दूसरों के पास है वही अच्छा लगता है। हम अपनी कमी निकालते रहते हैं। कुछ हमारे घरवाले भी हमसे दुश्मनी करते हैं। बच्चे के थोड़े नम्बर कम आए या बच्चा गलती करे तो बाप कहता है- आलसी हो, गधे हो, बेवकूफ हो ।
फिर हम भी यही मानने लगते हैं कि हम मेहनती नहीं हैं। हम में बुद्धि नहीं है।
कोई कलाकार पेंटिंग बनाए और कोई उस पेंटिंग की निंदा करे तो सोचो वह किसकी निंदा होगी? तो क्या यह आपका शरीर आपने बनाया है? जिसने बनाया है आप तो उसी ईश्वर की निंदा कर देते हो।
मैंने कुछ देर पहले किसी मिडिया वाले से बात की। बच्चों के बारे में उन्होंने मुझसे कुछ प्रश्न किए। मैंने कहा- मां-बाप खुद जो नहीं बन पाते वह अपनी इच्छाएं बच्चों पर लादते हैं। फिर बच्चा अगर फेल हो जाए तो सारा गुस्सा बच्चे पर निकलता है। बच्चे को हम बच्चा नहीं होने देते। तुम ईश्वर बनकर बैठ जाते हो उस बच्चे के ऊपर । वह बच्चा क्यों फेल हुआ? उसकी कमजोरी क्या है ? कमी क्या है? यह सब जाने बगैर उसकी पिटाई कर देते हो। उसे गधा बोलते हो।
परिवार व स्कूल कभी-कभी बच्चों को इतना डांट देते हैं कि वह बच्चा बचपन की डांट 60,70 साल का होने पर भी नहीं भूलता। उसे यही लगता है कि वह बेवकूफ है।
उसे पनपने दो.... खेलने दो.... ।
मां-बाप बच्चे की किस्मत के मालिक नहीं होते। मां-बाप को यह भी नहीं समझना चाहिए कि बच्चा उसकी जायदाद है। हर जीव अपनी-अपनी यात्रा कर रहा है। वह अपने पूर्व के कर्मों को जी रहा है।
हम हमारी इच्छा पर लगाम लगा पाएं और चित्त को द्वेषरहित कर पाएं। इससे हमारा चित्त शांत होगा और सहज हमें ईश्वर प्राप्त होगा।
एक व्यक्ति रोज सुबह खुद का नाम लेता और खुद को ही सुप्रभात (गुडमॉर्निंग) कहता। लोग उसे कहते कि यह क्या कर रहे हो? यह कहता- मैं नींद में ही मर नहीं गया, मेरी सांसे चल रही हैं। में देख रहा हूं। इसलिए मेरी सुबह तो अच्छी ही है। इसलिए में मेरे शरीर को ही सुप्रभात कह रहा हूं। मेरा शरीर ही तो मेरा निकट का पड़ोसी है।
हमें भी प्रभु के नाम के साथ अपना दिन शुरु करना चाहिए। जब दिन अच्छा शुरु होगा तो पूरा दिन ही अच्छा जाएगा। आप सुबह मुस्कराकर ईश्वर का नाम लेकर अपना दिन शुरु करें। सुबह थोड़ा ध्यान कर लो तो मन आनंद से भरा रहेगा। किसी पड़ोसी को, जो गुस्सा हो रहा हो, उसे गले लगाओ। सच तो यही है कि लोग ट्रेंड हैं एक-दूसरे को दुःखी करने के लिए। दूसरों को भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाने में लगे रहते हैं
एक पत्नि को पति ने कहा- थोड़ी सी चीनी दो, चाय में चीनी कम है। पत्नि ले मर! शुगर होएगी तुझे। उस पति ने जरा सी चीनी मांगी। बिना कड़वा बोले भी दे सकते हो। जरुरी नहीं कि कड़वाहट साथ में परोसी जाए। बच्चा मां से जरा कुछ कह दे कि ये कर दो। मां पहले कड़वा ही बोलेगी। तुम्हारे तो हाथ टूट गए हैं। अपने आप कुछ न करोगे। नौकर हूं तेरे बाप की।
जब तूने ही करना है तो ये कड़वा वचन क्यों बोलें? न चाहते हुए भी हम कठोर बोलते हैं। हमें अच्छा नहीं लगता कोई हमें कठोर बोले, पर हम दूसरों को जरुर बोलते हैं।
परिवार में सभी एक-दूसरे को दुःख देते हैं। ऑफिस में कर्मचारी एक-दूसरे को दुःख देते हैं। अगर ट्रेफिक में हों तो एक-दूसरे को घूरते हैं। जरा-सी ग्रीन लाईट हुई नहीं कि चलता क्यों नहीं? अंधा है क्या ? यहीं बैठेगा? सोएगा क्या? घर बनाएगा?
हम इतने जले-भुन बेसबरे क्रोधी हो चुके हैं।
फिर हम पूछते हैं- गुरुजी मन नहीं टिकता है?
मां-बाप बच्चे की किस्मत के मालिक नहीं होते। मां-बाप को यह भी नहीं समझना चाहिए कि बच्चा उसकी जायदाद है। हर जीव अपनी-अपनी यात्रा कर रहा है। वह अपने पूर्व के कर्मों को जी रहा है।
हम हमारी इच्छा पर लगाम लगा पाएं और चित्त को द्वेषरहित कर पाएं। इससे हमारा चित्त शांत होगा और सहज हमें ईश्वर प्राप्त होगा।
एक व्यक्ति रोज सुबह खुद का नाम लेता और खुद को ही सुप्रभात (गुडमॉर्निंग) कहता। लोग उसे कहते कि यह क्या कर रहे हो? यह कहता- मैं नींद में ही मर नहीं गया, मेरी सांसे चल रही हैं। में देख रहा हूं। इसलिए मेरी सुबह तो अच्छी ही है। इसलिए में मेरे शरीर को ही सुप्रभात कह रहा हूं। मेरा शरीर ही तो मेरा निकट का पड़ोसी है।
हमें भी प्रभु के नाम के साथ अपना दिन शुरु करना चाहिए। जब दिन अच्छा शुरु होगा तो पूरा दिन ही अच्छा जाएगा। आप सुबह मुस्कराकर ईश्वर का नाम लेकर अपना दिन शुरु करें। सुबह थोड़ा ध्यान कर लो तो मन आनंद से भरा रहेगा। किसी पड़ोसी को, जो गुस्सा हो रहा हो, उसे गले लगाओ। सच तो यही है कि लोग ट्रेंड हैं एक-दूसरे को दुःखी करने के लिए। दूसरों को भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाने में लगे रहते हैं
एक पत्नि को पति ने कहा- थोड़ी सी चीनी दो, चाय में चीनी कम है। पत्नि ले मर! शुगर होएगी तुझे। उस पति ने जरा सी चीनी मांगी। बिना कड़वा बोले भी दे सकते हो। जरुरी नहीं कि कड़वाहट साथ में परोसी जाए। बच्चा मां से जरा कुछ कह दे कि ये कर दो। मां पहले कड़वा ही बोलेगी। तुम्हारे तो हाथ टूट गए हैं। अपने आप कुछ न करोगे। नौकर हूं तेरे बाप की।
जब तूने ही करना है तो ये कड़वा वचन क्यों बोलें? न चाहते हुए भी हम कठोर बोलते हैं। हमें अच्छा नहीं लगता कोई हमें कठोर बोले, पर हम दूसरों को जरुर बोलते हैं।
परिवार में सभी एक-दूसरे को दुःख देते हैं। ऑफिस में कर्मचारी एक-दूसरे को दुःख देते हैं। अगर ट्रेफिक में हों तो एक-दूसरे को घूरते हैं। जरा-सी ग्रीन लाईट हुई नहीं कि चलता क्यों नहीं? अंधा है क्या ? यहीं बैठेगा? सोएगा क्या? घर बनाएगा?
हम इतने जले-भुन बेसबरे क्रोधी हो चुके हैं।
फिर हम पूछते हैं- गुरुजी मन नहीं टिकता है?
कैसे टिकेगा?
खुद को आंख में ऊंगली मारते हो और कहते हो कि आंख दुःखती है।
मीठा बोलना शुरू करो। मीठी जुबान से दूसरों की मदद भी कर सकते हो। अपना काम भी करा सकते हो। किंतु मीठा तो वही बोलेगा जिसके मन में मिठास है।
मीठा बोलना शुरू करो। मीठी जुबान से दूसरों की मदद भी कर सकते हो। अपना काम भी करा सकते हो। किंतु मीठा तो वही बोलेगा जिसके मन में मिठास है।
ईश्वर का नाम लो, वही सुख की मणि है। ओम...
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