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रिश्तों की असली परीक्षा | Father Son Love vs Wife Ego


रिश्तों की असली परीक्षा | Father Son Love vs Wife Ego - www.saralvichar.in

"ये आजकल क्या तमाशा लगा रखा है तुमने? जब देखो अपने पापा के साथ ही खाना खाने बैठ जाते हो। अरे मैं भी इसी घर में रहती हूं। तुम्हारी पत्नी हूं। तुम्हारा इंतजार कर रही होती हूं। पर तुम्हें मेरी परवाह ही नहीं!"

नमिता मनन पर चिल्लाते हुए बोली।

"अरे यार! तो क्या गलत कर दिया? पापा के साथ ही तो खा रहा हूं। बेवजह बात का बतंगड़ क्यों बना रही हो? उल्टा तुम्हारे लिए तो अच्छा ही है ना कि आजकल मैं टाइम से आ जाता हूं, टाइम से खाना खा लेता हूं, और आजकल तुम रसोई से जल्दी फ्री हो जाती हो। आखिर मैं अपनी पत्नी को परेशान नहीं करता।"

मनन ने जवाब दिया और फिर कुछ न बोला। अपने काम में लग गया।

"अच्छा चलो, कल बाहर घूमने चलते हैं और फिर बाहर ही खाना खाकर आएंगे। बहुत दिन हो गए एक साथ कहीं गए हुए।"

नमिता बात को संभालते हुए बोली।

"अरे बहुत दिन कहां हो गए? अभी दस दिन पहले ही तो गए थे तुम्हारी मौसी की लड़की की शादी में।"

"अरे पर..."

"पर वर कुछ नहीं। अभी मुझे ऑफिस में बहुत जरूरी काम है। कम से कम चार-पांच दिन तो मुझे तुम कहीं भी जाने के लिए कुछ मत कहना। पापा दवाई लेने वाले होंगे, उन्हें दूध गर्म करके दे दो।"

मनन ने कहा।

मनन की बात सुनकर नमिता मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोली,
"जब देखो बस पापा-पापा-पापा। पापा के अलावा कोई दिखता ही नहीं है। जैसे और कोई काम ही नहीं है।"

"अरे! तुम अभी तक गई नहीं?"
उसे वहां खड़ी देखकर मनन ने कहा।

"हां, जा रही हूं। थोड़ा बाहर घूम कर आ रही हूं। वैसे भी पापा आजकल दूध नहीं पीते।"
नमिता ने कहा।

"क्यों? पहले तो पीते थे। अब क्या हो गया?"

"अरे अब बुढ़ापे का शरीर है। नहीं पचता होगा दूध। इसलिए उन्होंने खुद मना कर दिया।"

कहकर नमिता रवाना हो गई।

उसके बाहर जाने के बाद मनन अपने काम में लग गया। लेकिन कुछ सोचकर दस मिनट बाद ही अपनी जगह से उठा और रसोई में आ गया। एक गिलास दूध गर्म कर पापा के कमरे में लेकर गया। देखा तो पापा अपनी दवाइयों के साथ बैठे हुए थे।

उन्हें देखते ही मनन ने कहा,
"क्या हुआ पापा? अभी तक दवाई नहीं ली?"

उसकी आवाज सुनकर पापा ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा।
"बस बेटा, अभी दवाई ले ही रहा हूं। तुम्हें कुछ काम था?"

"हां, मैं आपके लिए ये एक गिलास गर्म दूध लेकर आया हूं। आपको दवाई के साथ चाहिए होता है ना। और फिर आपको गर्म दूध के बिना नींद भी नहीं आती।"

मनन पापा के पास बैठते हुए बोला।

सुनकर पापा हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे।
"पर बहू..."
कहते-कहते वो रुक गए।

मनन उनके मन की बात को समझते हुए बोला,
"मैं आपका बेटा हूं। आप मेरी जिम्मेदारी हो। आपको जो चाहिए मुझसे कहिए। अब आप दवाई लेकर सो जाइए। और बहू की फिक्र मत कीजिए।"

ये सुनकर पापा की आंखों में आंसू झलक आए। पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। पापा को दवाई और दूध देकर मनन ने गिलास रसोई में रखा और अपने कमरे में आकर बैठ गया।

लैपटॉप खोलकर अपना काम करने लगा, पर काम में मन ही नहीं लगा। अभी दस दिन पहले की बातें दिमाग में घूमने लगीं। उस दिन अचानक वो शाम को जल्दी घर आ गया था। उस दिन नमिता घर पर नहीं थी। वो पार्लर तैयार होने गई थी।

उन दोनों को नमिता की मौसी की बेटी की शादी में जाना था। नमिता ने उसे ऑफिस में ही फोन कर दिया था,
"मैं पार्लर जा रही हूं। जब तुम घर से रेडी होकर आओ तो मुझे पार्लर से ही रिसीव कर लेना।"

नमिता को पूरा विश्वास था कि मनन तो 8 बजे तक पहुंचेगा। पर मनन तो आधे घंटे बाद ही घर पहुंच गया। दरवाजा खोलकर अंदर गया तो देखा पापा खाना खा रहे थे। हां, पापा अक्सर इस टाइम पर खाना खा लेते थे।

अभी वो अंदर कमरे में जा ही रहा था कि उसका ध्यान पापा की खाने की थाली पर गया। देखा, उसमें ठंडी रोटी और पतली सी दाल रखी हुई है।

"पापा ये कैसा खाना खा रहे हो आप? ठंडी रोटी और पतली दाल! ना कोई सब्जी है, ना सलाद! ऐसे कैसे खाना खा रहे हो आप? क्या नमिता खाना बना कर नहीं गई?"
मनन ने पूछा।

"बेटा, खाना यही रखा था तो..."
पापा ज्यादा कुछ नहीं बोले।

"एक मिनट रुको आप!"
कहकर मनन रसोई में गया। देखा तो खाना बना ही नहीं था। उसने उसी समय नमिता को फोन लगाया। फोन उठते ही उसने कहा,
"अरे नमिता, मैं ये पूछ रहा था कि हम दोनों तो पार्टी में जा रहे हैं। तुम पापा के लिए खाना तो तैयार करके आ गई हो ना?"

"कैसी बात कर रहे हो मनन? क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है? मैं खाना बना भी आई हूं, पापा जी को खिला कर भी आ गई हूं। तुम तो 8 बजे घर पहुंच कर तैयार होकर मुझे लेने आ जाना।"

नमिता पूरे विश्वास के साथ बोली।

इसके बाद नमिता ने फोन काट दिया। इधर मनन वापस पापा के पास आया और बोला,
"पापा, आप हर रोज ऐसा ही खाना खाते हो?"

"हां बेटा। पर तू बहू से कुछ मत कहना। नहीं तो वो नाराज हो जाएगी, फिर वो मुझे खाना भी नहीं देगी।"

सुनकर मनन हैरान रह गया। उसे नमिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था। पर उसने पापा से कहा,
"आप ये खाना मत खाओ। मैं आपके लिए गरम रोटी सेक कर लाता हूं।"

"अरे बेटा, तू ऑफिस से थका हारा आया है और अब मेरे लिए रोटी बनाएगा? रहने दे, मैं तो यही खा लूंगा। मुझे तो वैसे भी ठंडी रोटी खाने की आदत है।"

पापा मुस्कुरा कर बोले।

"नहीं पापा, मैं आपके लिए गरम रोटी बनाकर लाता हूं। वैसे ही जैसे आप बचपन में मेरे लिए बनाते थे। आज आप मेरे हाथ की बनी रोटी खाइए।"

उसके बाद मनन रसोई में गया और पापा के लिए आटा गूंथ कर रोटी सेंकने लगा। और उन्हें गरमागरम रोटी परोसी। रोटी खाते हुए पापा की आंखों में आंसू आ गए। ये देखकर मनन उन्हें बाहों में भरते हुए बोला,
"पापा, आप रो रहे हो? बचपन में मम्मी के जाने के बाद आप भी तो रोज शाम को इसी तरह मुझे रोटी बना कर खिलाते थे। मैंने एक दिन क्या रोटी बनाकर खिला दी तो आप उसी में रो पड़े?"

सुनकर पापा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने मनन को ढेरों आशीर्वाद दिए।

ये देखकर खुद मनन को भी बड़ा अफसोस हुआ कि कितने दिनों से पापा ये सब झेल रहे होंगे। वो तो नमिता पर कितना विश्वास करता था। इसलिए उसने कभी पूछा ही नहीं कि वो पापा की किस तरह से सेवा कर रही है।

खैर, थोड़ी देर बाद रसोई की सफाई कर मनन तैयार होकर नमिता को लेकर पार्टी में पहुंच गया। पर उसने इस बारे में नमिता से कोई बात नहीं की। वो देखना चाहता था कि नमिता किस हद तक उसके पापा के साथ व्यवहार कर रही है।

दूसरे दिन शाम को उसने देखा कि पापा पानी से दवाई ले रहे हैं। जबकि पापा चाहे कितनी ही ठंडी रोटी खा लें, लेकिन रात को दूध उन्हें गर्म ही चाहिए होता था। जब अपने कमरे में जाकर नमिता से दूध के लिए पूछा तो नमिता ने कहा,
"पापा जी ने दूध पी लिया है और दवाई लेकर सो गए हैं। तुमसे ज्यादा इस बात की फिक्र मुझे है।"

नमिता ने बड़े प्यार से कहा। अब तो मनन को पूरा विश्वास हो चुका था कि नमिता का व्यवहार पापा के लिए ठीक नहीं है और कितनी आसानी से वो झूठ बोल देती है।

पर उसने सोचा कि जब वो बेटा होकर अपने पापा की सेवा नहीं कर पाया, तो फिर एक बहू से क्या उम्मीद करे। इसलिए नमिता से लड़ने की जगह मनन ने इसका हल यह निकाला कि अब चाहे कितना भी बिजी क्यों न हो, रोज शाम को 7 बजे तक घर पहुंचेगा और पापा के साथ ही खाना खाएगा।

अब नमिता मनन के सामने क्या नाटक करे? इसलिए जो खाना उसे मनन को परोसना होता था, वही पापा जी को भी परोसना पड़ता था। इस बहाने पापा जी को भी अच्छा खाना मिल रहा था।

अब वो सुबह का नाश्ता और रात का खाना पापा के साथ ही खाता था। दोपहर में उन्हें कुछ और खाने की इच्छा हो तो उसके लिए अलग से खाने-पीने का सामान उनकी अलमारी में रख देता था। जानता था कि नमिता तो उनके कमरे में आएगी नहीं।

यहां तक कि रात को मनन खुद अपने हाथों से दूध गर्म करके पापा को दे आता था। नमिता मन ही मन कुढ़ती रहती थी, पर कुछ कह नहीं पाती थी। क्योंकि जब भी वो कुछ कहती, मनन बड़े प्यार से उसे समझा देता था।

यहां तक कि जब वो कहीं बाहर जाता, तो घर में अपने ससुर जी को छोड़ जाता, जिनके सामने भी नमिता कोई तमाशा नहीं कर पाती थी।

एक-दो बार उसके पापा ने भी उसके इस स्वभाव को नोटिस किया था, तो उन्होंने उसे डांट कर चुप करवा दिया। ये कहकर कि किसी बुजुर्ग का दिल दुखा कर तू हमारे घर आई तो तेरी वहां कोई जगह नहीं है।

इसलिए अब नमिता ने चुप रहना ही ठीक समझा।

SARAL VICHAR

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