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औरत की पहचान | The Identity of a Woman

 

औरत की पहचान | The Identity of a Woman - www.saralvichar.in

शादी के तीस साल बाद आज उन्होंने बातों ही बातों में किसी बात से नाराज़ होकर सबके सामने कहा, "तूने आज तक किया ही क्या है? सिर्फ़ घर पर खाना बनाना और बच्चों को संभालना और वह भी ठीक से नहीं कर सकी। बच्चे भी तेरी सुनते कब हैं? वो अपने मन की ही तो करते हैं। इतने सालों में तूने उनको कुछ नहीं सिखाया, तभी इतने बिगड़ गए हैं दोनों बच्चे।"

अपने पति की ऐसी बात सुनकर आज पूरी रात मीना को नींद नहीं आई। मीना सोचती रही, रोती रही और बुदबुदाने लगी, "सच में मैंने आज तक किया ही क्या है? अगर मैंने आज तक इस घर के लिए सच में कुछ नहीं किया, तो अब मेरा यहां रहने का कोई मतलब नहीं। कहां जाना है, पता नहीं, मगर बस अब और नहीं।"

ये सोचते हुए मीना अपने पति रमेश को एक चिट्ठी लिखने लगी, "मैंने आज पूरी रात सोचा कि तुम शायद सही कह रहे थे, आज तक मैंने किया ही क्या है? कौन हूं मैं? क्या है मेरी पहचान? चाहती तो थी मैं भी आसमान में उड़ना, मगर उड़ने से पहले ही मेरे पंख काट दिए गए। सपना देखने से पहले ही सपना तोड़ दिया गया।

बाबा ने कहा, 'शादी की उम्र बीती जा रही है...' मुझसे पूछे बिना ही मेरी शादी करवा दी गई। बाबा का तो मानो बहुत बड़ा बोझ उतर गया। ससुराल में मेरे लिए हर कोई अजनबी सा था, मगर मां ने सिखाया था कि अब यही तुम्हारी दुनिया है, यही तेरे अपने। अब से इन सबको ही तुम अपने मां-बाबा और भाई-बहन समझना। पति तेरे लिए परमेश्वर है। इनकी कही कोई बात मत टालना। सबको प्यार देकर अपना बना लेना।"

मां की बात मानकर मैंने सबको अपना बनाया। मुझे क्या पसंद था और क्या नापसंद, इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं...

इतना लिखते-लिखते उसकी आंखें डबडबा उठीं। अक्षर झिलमिलाने लगे। चश्मा उतारकर आंखें पोंछीं, फिर लिखना शुरू किया।

"सुबह को तुम्हारी कॉफी और नाश्ता, बच्चों का लंच बॉक्स, बाबूजी की डायबिटीज़ की दवाई, नाश्ता, अम्मा के घुटनों की तेल मालिश, तुम्हारा टिफ़िन, बाज़ार जाना, शाम के खाने की तैयारी करना, अम्मा को इलाज के लिए बार-बार अस्पताल ले जाना, बच्चों को पढ़ाना, उनकी शैतानी बर्दाश्त करना, तुम्हारे दोस्त अचानक आ जाएं तो उनके लिए खाना बनाना... बस इतना ही तो किया मैंने! और क्या किया? इसलिए अब मुझे कुछ और करना है। अब मैं जा रही हूं। ये तो नहीं जानती कि कहां जाऊंगी, मगर मुझे जाना है। पर तुम अपना ख़्याल रखना।"

फिर मीना चिट्ठी टेबल पर रखकर चुपचाप घर से बाहर निकल पड़ी।

सुबह होते ही बाबूजी अपनी दवाई, नाश्ता और अख़बार के लिए बहू को आवाज़ देने लगे। उनके साथ ही अम्मा भी अपने घुटनों की मालिश के लिए बहू को आवाज़ देने लगीं। बच्चे भी बोले, "मां, हमारा ब्रेकफ़ास्ट कहां है?" कोई जवाब न पाकर चिंतित हो उठे कि आज मां कहां चली गई?

इतना शोरगुल सुनकर रमेश की भी नींद खुल गई।

"क्या हो गया..." यह सोचते हुए वो बाहर आया। "इतना शोर क्यों मचा रखा है सुबह-सुबह?"
"पापा, देखो ना, मां कहीं नहीं दिख रही। हमको कॉलेज जाने में देरी हो रही है। अभी तक ब्रेकफ़ास्ट भी नहीं किया। लगता है आज भूखा ही जाना पड़ेगा।" दूसरे ने कहा, "मेरी किताबें भी नहीं मिल रहीं, मां तुम कहां हो?"
बाबूजी ने आवाज़ लगाई, "बहू ज़रा देखो तो, मेरा चश्मा किधर है?"
अम्मा पुकार रही थीं, "बहू, मेरी मालिश की बोतल और दवाइयां कहां हैं?"

सारा घर जैसे बिखरा हुआ था। रमेश ज़ोर से चिल्लाया, "सब लोग चुप हो जाओ! मैं देखता हूं वो कहां है। यही कहीं होगी, कहां जाएगी?"
वो मीना को फोन करने लगा, मगर उसका फोन तो कमरे में टेबल पर ही पड़ा हुआ था। उसने देखा फोन के पास एक चिट्ठी भी थी। उसे आश्चर्य के साथ बेचैनी भी होने लगी। उसने जल्दी से चिट्ठी खोलकर पढ़ी।

चिट्ठी पढ़कर ही उसे याद आया कि उसने कल शाम अपनी पत्नी का कैसे अपमान किया था, वो भी सबके सामने! ओह! उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वो उससे माफ़ी मांगना चाहता था, मगर कैसे? उसका कोई अता-पता नहीं था। उसने उसके मायके और उसकी सहेलियों सबको फोन करके पूछा, मगर किसी को नहीं पता था कि वो कहां है, किस हाल में है।

घर में कोहराम सा मच गया था। बाबूजी और अम्मा तो जैसे अचानक ही और बूढ़े हो गए थे। उनकी दवाएं, उनका तेल, उनका चश्मा सब कुछ जैसे भूल गए थे। उनकी भूख-प्यास भी बंद सी हो रही थी। बच्चे घर से बाहर ही नहीं निकल रहे थे। बच्चे अचानक जैसे बड़े हो गए थे। मजबूरी में वे घर का काम संभालने लगे थे, मगर बहुत सारी चीज़ें उनको मिल ही नहीं रही थीं।

रमेश का दिमाग ही काम नहीं कर रहा था। वह करे तो क्या करे और जाए तो कहां जाए। पुलिस में रिपोर्ट करने में बात फैलने से बदनामी का डर था, मगर रिपोर्ट तो करनी ही होगी। उसने सोचा कि एक बार ससुरालवालों से बात करने के बाद ही पुलिस में मीना के गायब होने की रिपोर्ट देगा।

बिना नहाए-धोए, भूखा-प्यासा वह बदहवास सा अपनी ससुराल जा पहुंचा। ससुरालवालों ने उसकी हालत देखकर उसकी बात को गंभीरता से सुना। उसे बात करते-करते आंखों से आंसू बहते देख मीना से नहीं रहा गया और वह सामने आकर खड़ी हो गई।

रमेश जैसे नई ज़िंदगी पा गया हो। वह उठकर उसका हाथ पकड़ कर उसे भरी आंखों से देखने लगा। रमेश ने सबके सामने मीना से अपनी गलती की माफ़ी मांगी और वापस घर चलने को कहा।

नारी का दिल तो वैसे भी बड़ा होता है, इसलिए वह अपने परिवार को कैसे अकेला छोड़ देती? मीना ने रमेश को आंखों ही आंखों में माफ़ कर दिया और पति के साथ घर चली आई।

घर में सब लोग बहुत खुश हुए। सबको मीना की क़ीमत का पता भी चल चुका था। अब सभी मीना को काम में मदद भी करने लगे थे। अब सारे काम का बोझ सिर्फ़ मीना पर नहीं था। बच्चे अपनी मां को काम में मदद करने के साथ ही अपनी मां का सम्मान भी करने लगे थे।

रमेश ने अब जान लिया था कि मीना ने आज तक जो किया था, उसे कोई और कर पाने में सक्षम भी नहीं था।

साभार: सोशल मीडिया

SARAL VICHAR

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