दिन हो जाता शाम को 2 ... थक कर इतना चूर
कर लेता है रात की.... शर्तें सब मंजूर 2
फूलों के संग रह रहा.... मैं माटी का ढेर
मुझ में भी बस जाएगी, खुशबू देर सवेर 2
बहकाने में शोर का... बहुत बड़ा था हाथ
वरना मेरा मौन तो... खुश था मेरे साथ 2
पायल चुपके से कहे... धीरे चल ओ पांव
जाग ना जाए आज भी... फिर से सारा गांव 2
बीच सफर से चल दिया... ऐसे मेरा ख्वाब
आधी पढ़ कर छोड़ दे... जैसे कोई किताब2
ढूंढ रही है छांव को२.....बौराई सी धूप
श्यामल होने से डरे.. उसका गोरा रूप।
श्यामल होने से डरे.. उसका गोरा रूप।
समझ लिया है वक्त ने हमको एक सराय
भागा भागा आए है... भागा भागा जाए...2
दिन का आधा रास्ता२.... तय करती है रात
फिर भी दिन सुनता नहीं, उसके मन की बात 2
बरगद पनघट पर खड़ा, लिखता है इतिहास
किस किसने..किस किस तरह...यहां बुझाई प्यास 2
नदिया धीरे चल जरा... जाना है उस पार
बुलवाया है आज तो... उसने पहली बार.. 2
अल्हड़ता की खिड़कियां, मत करना तुम बंद
वरना फूलों में नहीं .... पनपेगा मकरंद 2
मकरंद = पराग (फूलों का पराग ही पौधों को प्रजनन करने और नए बीज तथा फल बनाने में सक्षम बनाता है)
तुमने तो बस कह दिया, कल करना अब बात
रोकूंगा मैं किस तरह.... आंसू सारी रात 2
लेना तू करवट हवा२.... धीरे-धीरे आज
जाग ना जाए चांदनी, सुन तेरी आवाज 2
अपनी अपनी जिंदगी पर भी.. दो तुम कुछ ध्यान
ऐसा ना हो ढूंढ ले.....कल ये नया मकान 2
दिन उसके संभले नहीं.... ना संभली है रात
छूटा जिसके हाथ से.... मेहंदी वाला हाथ 2
-सुधीर कुमार
सरल विचार
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