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सावित्री निवास | A story of love and family spirit

सावित्री निवास |  A story of love and family spirit - www.saralvichar.in

पहली बार नेहा ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े बुज़ुर्ग की उपस्थिति और नानी दादी जैसा स्नेह बच्चों पर कितना सकारात्मक प्रभाव डालता है। उसके बच्चे इस सुख से हमेशा वंचित रहे थे। उनके जन्म से पहले ही उनकी नानी और दादी दोनों का देहांत हो चुका था।

बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर लौटते समय नेहा का मन उदास था। वह टेरेस पर जाकर बैठ गई। मौसम सुहावना था। हल्के बादल थे और पक्षियों का मधुर गान भी था, पर उसे पिछला शहर, वह पुराना घर और वहां की व्यवस्थित ज़िंदगी याद आ रही थी।

तभी उसकी नज़र कुछ दूर पेड़ की ओट में खड़ी एक बुज़ुर्ग औरत पर पड़ी।
नेहा चौंक गई। वही बूढ़ी औरत, जिसे वह बीते कुछ दिनों से कई बार देख चुकी थी। उसे लगा कि वह औरत उसके घर की ओर क्यों ताकती रहती है। शंका और घबराहट उसके मन में घर करने लगी।

दो महीने पहले ही नेहा और अमित पूना से गुड़गांव आए थे। अमित का अचानक तबादला हो गया था। आते ही वे लगातार काम और टूर में व्यस्त हो गए। बच्चों को अब नया स्कूल मिल गया था, पर नेहा खुद को जैसे किसी नई मिट्टी में रोपा हुआ पेड़ समझ रही थी, जो जड़ नहीं पकड़ पा रहा था।

पूना का जीवन बिल्कुल व्यवस्थित था। नेहा की अच्छी नौकरी थी। एक भरोसेमंद मेड थी। बच्चों के पास अच्छा डे केयर था। पर यहां न ठीक मेड मिल रही थी न डे केयर। उसका करियर जैसे थम गया था। ऊपर से यह अनजानी बूढ़ी औरत, जिसे देखकर मन और बेचैन हो उठता था।

अमित जब टूर से लौटे तो नेहा ने सब बताया। अमित भी थोड़ा चिंतित हुए और बोले कि अगली बार वॉचमैन को कह देना कि वह उस औरत पर नज़र रखे। जरूरत पड़ी तो पुलिस में शिकायत कर देंगे।

कुछ दिनों बाद एक सुबह नेहा ने देखा कि वॉचमैन उसी बूढ़ी औरत को साथ लेकर मुख्य गेट पर खड़ा है। अमित उससे बात कर रहे थे। नेहा को लगा कि उसका चेहरा कहीं देखा हुआ है।

अमित अंदर आए तो नेहा ने पूछा कि वह औरत क्यों आई है।
अमित ने बताया कि “वह इस घर की पुरानी मालकिन हैं।”
नेहा चौंक गई।
अमित ने कहा कि “यह सावित्री देवी हैं, विवेक की मां. विवेक ने धोखे से सब कुछ अपने नाम करा लिया और फिर यह घर हमें बेचकर विदेश चला गया. अपनी बूढ़ी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया. आज उनके पति की पहली बरसी है, वे उस कमरे में दीया जलाना चाहती हैं जहां उनके पति ने अंतिम सांस ली थी.”

नेहा को याद आया कि स्टोर रूम में मिली पुरानी नेमप्लेट पर “सावित्री निवास” लिखा था और एक पुरानी तस्वीर भी मिली थी जिसका चेहरा इस बुज़ुर्ग महिला से मिलता था।

सावित्री देवी अंदर आईं। उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया और घर को भरभरकर देखने लगीं। जैसे आंखों में पुरानी यादें तैर रही हों। वे ऊपर वाले कमरे में गईं, कुछ देर मौन होकर बैठीं, दीया जलाया और फिर धीमे कदमों से वापस लौटने लगीं।

उनके जाने से पहले नेहा के मन में एक विचार आया। उसने अमित से कहा कि क्यों न सावित्री देवी को यहीं रख लिया जाए। वे अकेली हैं, बेसहारा हैं और इस घर से उनका गहरा लगाव है। अगर वे यहां रहेंगी तो घर और बच्चों पर पूरी नज़र रहेगी और नेहा भी निश्चिंत होकर अपनी नौकरी कर सकेगी।

अमित ने कहा कि कोशिश कर लो, पर पता नहीं वे मानेंगी भी या नहीं।

नेहा ने सावित्री देवी से कहा कि यदि चाहें तो यहां रह सकती हैं। सावित्री देवी का चेहरा एक क्षण के लिए खिल उठा, पर फिर बुझ गया। उन्हें लगा कि आज के समय में बिना स्वार्थ कोई किसी को घर में क्यों रखेगा। पर इस घर का मोह इतना था कि वे मना न कर सकीं।

वे उनके साथ रहने लगीं। धीरे धीरे घर की सारी व्यवस्था सावित्री देवी की निगरानी में सुचारु होने लगी। बच्चे उनसे बेहद घुल मिल गए। वे उन्हें कहानियां सुनातीं, समय पर खाना खिलातीं, होमवर्क करवातीं और अच्छे संस्कार देतीं। टीवी के सामने बैठे रहने वाले बच्चे अब उनकी कहानियों का इंतजार करते। घर में प्रेम और अनुशासन दोनों बढ़ गए।

नेहा और अमित हैरान थे कि बच्चों में इतनी सुखद बदलाव किस तरह आ गया। पहली बार नेहा ने महसूस किया कि बड़े बुज़ुर्ग का स्नेह कितना अनमोल होता है।

एक वर्ष बीत गया।

आज नेहा का जन्मदिन था। दोनों बाहर भोजन करने का विचार बनाकर आए थे, पर घर में घुसते ही चकित रह गए। बच्चों ने घर सजाया हुआ था। सावित्री देवी ने नेहा की पसंद के व्यंजन बनाए थे और केक भी।

नेहा की आंखें भर आईं। बच्चों ने उसके लिए पहले कभी ऐसा कुछ नहीं किया था।

केक काटने के बाद सावित्री देवी ने अपने पल्लू में बंधी एक लाल रुमाल निकाली और नेहा को दी। रुमाल में सोने की चेन थी।
उन्होंने कहा कि यही एक वस्तु बची थी जो उन्होंने संभालकर रखी थी और वे इसे नेहा को देना चाहती हैं।

नेहा का मन भर आया। जिसे उसने पहले केवल स्वार्थ से घर में लाया था, वही आज इतना नि स्वार्थ प्रेम दे रही थी।

नेहा उन्हें गले लगाकर रो पड़ी। उसे लगा जैसे उसकी अपनी मां उसे थामे हुए हो।

उस दिन नेहा को अनमोल उपहार मिला था।
मां जैसा प्रेम, जो किसी मूल्य से नहीं मिलता।

और उसी दिन पुराने घर की नेमप्लेट अपने अर्थ में फिर से चमक उठी।
जिस पर लिखा था ... सावित्री निवास

-Deepti Mittal

SARAL VICHAR

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